हर पल हर जीव में भगवान के दर्शन

जीव में भगवान के दर्शन

जीव में भगवान के दर्शन

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 हर पल हर जीव में भगवान के दर्शन  संत एकनाथ बहुत परोपकारी थे। वे महान संत थे लेकिन उनके आचरण, व्यवहार और वाणी में कोई दिखावा नहीं था। वे मूलतः महाराष्ट्र से थे, परन्तु उनके नेक कामों की सुगंध पूरी दुनिया में फैली।

एक बार संत एकनाथ के मन में यह विचार आया कि प्रयाग जाकर त्रिवेणी में स्नान किया जाए और त्रिवेणी का पवित्र जल कांवड़ में भरकर रामेश्वरम में चढ़ाया जाए। उन्होंने इस बारे में अपने साथियों से चर्चा की तो सभी तैयार हो गए। एकनाथ भजन-सत्संग करते हुए प्रयाग पहुँच गए।

 वहाँ उन्होंने त्रिवेणी में स्नान किया और उसका पवित्र जल कांवड़ में भरकर रामेश्वरम चल दिए। एकनाथ के साथी भजन-कीर्तन करते रामेश्वर जा रहे थे। शरीर में थकान तो थी लेकिन कांवड़ की उमंग उन्हें लगातार आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रही थी। चलते-चलते वे रामेश्वरम के निकट पहुँच गए। नगर में प्रवेश करने से पूर्व सभी साथियों ने निर्णय किया कि थोड़ी देर यहाँ विश्राम किया जाए। सभी विश्राम करने लगे।

उस जगह के नजदीक एक गधा भी लेटा हुआ था। तेज धूप और बीमारी की वजह से उसके पैरों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह कुछ दूर चलकर पानी पी सके। एकनाथ और उसके सभी साथियों ने उसे देखा। सभी उसकी ऐसी स्थिति पर चर्चा करने लगे।

कोई कहता, भगवान ने ये कैसा संसार बनाया है ?

इस जीव को जीवन तो दे दिया लेकिन आज उसे इतनी शक्ति भी नहीं दी कि यह कुछ दूर चलकर पानी पी सके। दूसरा कहता, इसे प्यास लगी है। अगर कोई पशुओं के लिए यहाँ पानी की व्यवस्था करा दे तो उसे कितना पुण्य प्राप्त हो लेकिन इस प्राणी के भाग्य में तो पानी भी नहीं लिखा। सभी अपनी राय देकर स्थिति को कोस रहे थे।

एकनाथ ने उस गधे की स्थिति देखी और उन्होंने अपनी कांवड़ से पवित्र जल का पात्र खोला। वे उसे गधे के मुँह के पास ले गए और पूरा जल उसे पिला दिया। गर्मी के मौसम में ऐसा पवित्र जल पीकर उस जानवर की स्थिति में सुधार हुआ और वह उठकर चला गया। उसके नेत्रों में कृतज्ञता के आँसू थे। कहा जाता है 

कि उस समय एकनाथ को ईश्वरीय वाणी सुनाई दी – एकनाथ, इस जीव पर दया कर तुमने महान पुण्य का कार्य किया है। तुमने उस प्राणी में साक्षात मेरे ही दर्शन किए हैं। मैं रामेश्वरम पहुँचने से पहले ही तुम्हारी कांवड़ स्वीकार करता हूँ।

वास्तव में सभी धर्मों ने माना है कि जीवों की सेवा करना भी परमात्मा की ही सेवा करना है। जो इस सत्य को समझकर अपने जीवन में उतार लेता है, उसे शीघ्र ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति होती है।

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